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आ꣡ प꣢वस्व सह꣣स्रि꣡ण꣢ꣳ र꣣यि꣡ꣳ सो꣢म सु꣣वी꣡र्य꣢म् । अ꣣स्मे꣡ श्रवा꣢꣯ꣳसि धारय ॥५०१

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स्वर-रहित-मन्त्र

आ पवस्व सहस्रिणꣳ रयिꣳ सोम सुवीर्यम् । अस्मे श्रवाꣳसि धारय ॥५०१

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ꣢ । प꣣वस्व । सहस्रि꣡ण꣢म् । र꣣यि꣢म् । सो꣣म । सुवी꣡र्य꣢म् । सु꣣ । वी꣡र्य꣢꣯म् । अ꣣स्मे꣡इति꣢ । श्र꣡वाँ꣢꣯सि । धा꣣रय ॥५०१॥

सामवेद » - पूर्वार्चिकः » मन्त्र संख्या - 501 | (कौथोम) 6 » 1 » 2 » 5 | (रानायाणीय) 5 » 4 » 5


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में सोम परमात्मा तथा आचार्य से प्रार्थना की गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (सोम) सर्वैश्वर्यवान् जगदीश्वर अथवा विद्वन् आचार्य ! आप हमारे लिए (सहस्रिणम्) सहस्रों की संख्यावाले अथवा प्रचुर, (सुवीर्यम्) शुभ बल से युक्त (रयिम्) ऐश्वर्य को अथवा विद्याधन को (आ पवस्व) प्रवाहित कीजिए, और (अस्मे) हममें (श्रवांसि) यशों को (धारय) स्थापित कीजिए ॥५॥

भावार्थभाषाः -

परमेश्वर की कृपा से हम धन, धान्य, सुवर्ण आदि और सत्य, न्याय, बल, वीर्य आदि सब प्रकार के अपार ऐश्वर्य को तथा आचार्य की कृपा से अपार सद्विद्या एवं सदाचार के धन को प्राप्त करें, जिससे हमारी अधिकाधिक कीर्ति सर्वत्र फैले ॥५॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ सोमं परमात्मानमाचार्यं च प्रार्थयते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (सोम) सर्वैश्वर्यशालिन् जगदीश्वर विद्वन् आचार्य वा ! त्वम् अस्मभ्यम् (सहस्रिणम्) सहस्रसंख्यं प्रचुरं वा (सुवीर्यम्) शोभनवीर्योपेतम् (रयिम्) ऐश्वर्यं विद्याधनं वा (आ पवस्व) प्रवाहय। (अस्मे) अस्मासु। अत्र अस्मच्छब्दात् ‘सुपां सुलुक्।’ अ० ७।१।३९ इति सप्तम्याः शे आदेशः। (श्रवांसि) यशांसि (धारय) स्थापय ॥५॥

भावार्थभाषाः -

परमेशकृपया वयं धनधान्यहिरण्यादिकं सत्यन्यायबलवीर्यादिकं च सर्वविधमपारमैश्वर्यम् आचार्यकृपया चापारं सद्विद्यासदाचारधनं प्राप्नुयाम येनास्माकं प्रभूता कीर्तिः सर्वत्र प्रसरेत् ॥५॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।६३।१।